युवा असंतोष निबंध
वर्तमान युग को असंतोष का युग कहा जा सकता है । बच्चे, बूढ़े, जवान, स्त्री, पुरुष कोई भी संतुष्ट नहीं है। किन्तु युवा वर्ग में असंतोष अपेक्षाकृत अधिक देखने को मिलता है। इसका कारण है-सरकार की नाकामी, नेताओं का खोखला आश्वासन । युवा वर्ग को शिक्षा ग्रहण करते समय बड़े-बड़े सब्ज बाग दिखाये जाते हैं । वे मेहनत से डिग्रियाँ हासिल करते हैं, किन्तु जब वह व्यावहारिक जीवन में प्रवेश करता है, तब खुद हो हारा हुआ असहाय महसूस करता है । जिस डिग्री के लिए वह इतनी मेहनत करता है वही उसे निरर्थक लगने लगती है। हर क्षेत्र में शिक्षितों की भीड़ नजर आती है। रोजगार के लिए वह भटकता है। जिनके साथ सिफारिश होती है उन्हें आसानी से नौकरी मिल जाती है, योग्यता न होते हुए वह सारी सुविधाएँ प्राप्त कर लेता है।
उच्च शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थियों की इच्छाओं को भड़काया जाता है। राजनीतिक नेता तरह-तरह के प्रलोभन देकर उन्हें भड़काते हैं। युवाओं का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें चुनाव लड़वाते हैं। कुछ वास्तविक और नकली माँगों, सुविधाओं के नाम पर हड़तालें करवा कर उन्हें लक्ष्य से भटका देते हैं। इन सबका परिणाम सदैव शून्य होता है। परिणामस्वरूप बेकारों की भीड़ इकट्ठा हो जाती है, युवाओं को निराशा और असंतोष के सिवा कुछ नहीं मिलता। यही युवा कल के भविष्य हैं इन्हीं की उन्नति से देश की उन्नति है। किन्तु सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र में उन्हें बरगलाया जाता है। उनकी वास्तविक जरूरतों पर ध्यान नहीं दिया जाता उन्हें केवल सपने दिखाये जाते हैं। पढ़ाई, लिखाई, शिक्षा, सभ्यता-संस्कृति, राजनीति और सामाजिकता हर क्षेत्र में उन्हें बड़े-बड़े सपने दिखाए जाते हैं कि ये सपने केवल सपने ही होते हैं। और इन्हीं सब कारणों से उनमें असंतोष होता है।
भ्रष्टाचार के द्वारा जिनके सपने पूर्ण भी होते हैं, वे अनैतिक कार्यों में लिप्त रहते हैं और इन्हीं की बनावटी जिंदगी, शान-शौकत से दूसरे युवाओं में हीन भाव जागती है परिणामतः असंतोष उपजता है। आज असंतोष, अतृप्ति, लूट-खसोट, अपराध युवाओं के व्यावहारिक जीवन का अंग बन चुके हैं तो युवा तृप्त कैसे हो सकता है। समाज मूल्यहीन हो गया है अनैतिकता सम्मानित हो रही है तो युवा मूल्यों पर आधारित जीवन जी कर आगे नहीं बढ़ सकते, तब असंतोष का जन्म लेना स्वाभाविक है।