चतुर लोमड़ी Chatur lomadi chhattisgarhi kahani



 चतुर लोमड़ी

एक समय की बात है । किसी जंगल में एक लोमड़ी का परिवार रहता था। पति-पत्नी और दो बच्चों का सुखी परिवार । हँसी-खुशी जंगल में समय बिता रहे थे। कुछ समय बाद जंगल में भोजन का अभाव होने लगा। बच्चों को कभी-कभी भूखा भी रहना पड़ता था। एक दिन बच्चे भूख के कारण रो रहे थे। तभी लोमड़ी की पत्नी ने कहा- देखो जी, भूख के मारे बच्चे बिलख रहे हैं। लोमड़ी ने कहा-ओहो … इन बच्चों को रोज मुर्गे का माँस कहाँ से मिलेगा ? फिर भी कहीं दूर ही जाकर बच्चों के लिए भोजन तलाश करता हूँ।

एक दिन लोमड़ी अपनी पत्नी और बच्चों को लेकर पर्वत पार करके दस कोस दूर भोजन की तलाश में चला गया। परन्तु कहीं भोजन नहीं मिला। बच्चे चलते-चलते थक गए।

शाम होने लगी। सभी जीव-जन्तु अपने घर वापस होने लगे थे। तब लोमड़ी की पत्नी ने कहा-’’हो जी, रात होने को है। इन बच्चों को उतनी दूर कैसे ले जाएंगे। यहीं-कहीं रात बिताने के लिए स्थान देख लेते तो अच्छा होता । यहीं रात बिता लेते।’’ लोमड़ी ने कहा- ‘‘तुम ठीक कहती हो।’’ लोमड़ी पर्वत के ऊपर स्थान तलाशने लगा। वहाँ उसे शेर की एक गुफा दिखाई दी। लोमड़ी ने दूर से ही कहा- बच्चों को यहीं ले आओे जी। बच्चों को लेकर लोमड़ी की पत्नि शेर की गुफा में घुस आई। उसने कहा- ‘‘सुनो जी, यह तो शेर की गुफा है। शेर आ गया तो हम क्या करेंगे ?’’ लोमड़ी ने कहा- ‘‘तुम धैर्य रखो। मैं तरकीब बताता हूँ, वैसा ही करना। जब शेर आएगा तब मैं तुम्हें आँख से इशारा करूँगा। तुम बच्चों को चिकोटी काट देना, बच्चे रोएंगे। मैं तुमसे कहूँगा- बच्चों को क्यों रुला रही है ?’’ तब तुनककर कहना- ‘‘बच्चे कह रहे है, शेर का बासी मांस नहीं खाना है। शेर के ताजे मांस के लिए रो रहे हैं। ‘‘मैं कहूँगा- थोड़ी देर ठहरो, अभी शेर आ रहा है, इसे मारकर ताजा भोजन बनाऊ्रँगा। तब बच्चे खाएंगे।’’ थोड़ी देर बाद शेर वहाँ पहुँचा। उसे देखते ही सियार ने अपनी पत्नी को इशारा कर दिया। उसकी पत्नी ने वैसा ही किया, जैसा उसे लोमड़ी ने सिखाया था।

शेर लोमड़ी की बात सुनकर अवाक् रह गया। उसने सोचा गुफा के अंदर शायद कोई बड़ा जानवर होगा। अब यहाँ रहना ठीक नहीं है। शेर डरकर वहाँ से भाग निकला।

शेर को भागते देखकर बंदर ने कहा – ‘‘भैय्या! आप जंगल के राजा होकर कहाँ भाग रहे हंै। शाम का समय है । कहाँ जाएँगे, मुझे भी थोड़ा बताइए।’’ शेर ने कहा- ‘‘तुम भी मेरी समस्या को हल नहीं कर पाओगे भैय्या। मेरी गुफा में कोई शत्रु घुस आया है। उसके डर से बचने के लिए ही भाग रहा हूँ।’’

बंदर ने कहा -’’वो शत्रु कौन है, उसे मैं भी तो देखूं? मेरे साथ वहाँ तक तो चलिए।’’ शेर ने कहा- ‘‘तुम तो उसे देखते ही पेड़ पर छलाँग लगाकर चढ़ जाओगे और बच जाओगे, मैं तो मारा जाऊ्रँगा। वह मुझे फंसा लेगा तब मैं क्या करूंगा?’’ बंदर ने कहा- ‘‘मेरी बात मान लो, वहां कोई शत्रु-वत्रु नहीं है, एक लोमड़ी अपने बच्चों के साथ जा बैठा है।’’

शेर ने कहा- ‘‘मुझे तुम्हारी बातों पर विश्वास नहीं होता। फिर भी तुम कहते हो तो तुम्हारी पूँछ मेरी पूँछ से बाँध लो, तभी मैं चलूँगा।’’ बंदर ऐसा करने के लिए तैयार हो गया। दोनों अपनी-अपनी पूँछ को एक-दूसरे से बाँधकर चल पड़े। जैसे ही दोनों गुफा के पास पहुँचे ,नर लोमड़ी ने मादा लोमड़ी को आंँखों से इशारा कर दिया। लोमड़ी ने कहा- ‘‘तुम अभी भी बच्चों को क्यों रूला रही हो।’’ तब मादा लोमड़ी ने कहा- ‘‘ये बच्चे कह रहे हैं कि शेर का ताजा माँस होने से ही खाएंगे।’’

लोमड़ी ने कहा – ‘‘थोड़ी देर रूको, शेर तो भाग गया था, परन्तु अभी मेरा परम मित्र बंदर उसे अपनी पूँछ में बाँधकर ला रहा है। वो! देखो, अभी आ ही रहा है।’’ यह सुनकर शेर ने सोचा यह बंदर मुझे धोखा देकर ला रहा है। मैं भाग न जाऊँ, यह सोचकर अपनी पूँछ को बाँध रखा है। ऐसा सोचकर शेर अपने आपको बचाने के लिए भागने लगा। उसके साथ बंदर घिसट रहा था। बंदर की चमड़ी निकल आई। पूंछ टूट गई। बंदर दर्द से कराहता पेड़ पर चढ़ गया और शेर हमेशा के लिए उस गुफा को छोड़कर भाग गया।

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