परीक्षा की तैयारी पर निबंध pariksha ki taiyari

 


परीक्षा की तैयारी :- निबंध 

परीक्षा शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है-पर + इच्छा। अर्थात् जो दूसरों की इच्छा पर निर्भर हो। बिना परीक्षण के किसी भी वस्तु की गुणवत्ता नहीं जानी जा सकती, न ही उसके लाभ या हानि के संबंध में जाना जा सकता है और न ही उसकी उपयोगिता सिद्ध की जा सकती है। इसलिए प्रत्येक वस्तु का परीक्षण आवश्यक है। ठीक उसी प्रकार प्रत्येक प्रकार की शिक्षा के लिए भी परीक्षा आवश्यक है। परीक्षा के बिना शिक्षा का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता और न ही स्तर ज्ञात किया जा सकता है। परीक्षा से विद्यार्थी सदैव भयभीत रहते हैं। उसे कठिन मानकर चिंतित रहते हैं। परीक्षा नाम से ही उनके भीतर तनाव घर कर जाता है। किन्तु हर विद्यार्थी के साथ ऐसा नहीं होता। जो विद्यार्थी सत्र की शुरुआत से ही सुचारू रूप से अपनी पढ़ाई करते हैं नियमित विद्यालय जाते हैं और विषय का नियमित रूप से अध्ययन करते हैं उनके सामने यह समस्या नहीं आती। परीक्षा उन विद्यार्थियों के लिए हौवा या मुसीवत है जिनका मन पढ़ाई में नहीं लगता। आँखें तो किताब पर टिकी होती हैं और मन कहीं और भटकता रहता है। न ही नियमित रूप से विद्यालय जाते हैं और न ही पुस्तकों को घर में छूने की तकलीफ उठाते हैं। ऐसे विद्यार्थियों की तैयारी किस प्रकार से होगी ? परीक्षा की तैयारी तो नए सत्र से ही योजना बनाकर शुरू करनी चाहिए।

 हर विश्वविद्यालय या बोर्ड प्रत्येक कक्षा के स्तर के अनुसार पाठ्यक्रम बनाता है जिसे आधार बनाकर ही शिक्षक विद्यार्थियों को तैयारी करवाता है । विद्यार्थियों को चाहिए कि वे प्रतिदिन अपना कक्षा-कार्य एवं गृह-कार्य पूर्ण करें। जैसे-जैसे पाठ्यक्रम आगे बढ़ता है, शिक्षक के साथ-साथ पाठों की तैयारी में विद्यार्थियों को भी तत्पर रहना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि विद्यार्थी कक्षा में पाठ को ध्यानपूर्वक सुनें घर पर इसका अध्ययन करके स्मरण करें और पुराने पाठ को दोहरायें । विद्यार्थी को चाहिए कि वह प्रतिदिन प्रातः काल उठ कर पूर्व में पढ़ाये गए पाठ का स्मरण करें और अगले दिन पढ़ाये जाने वाले पाठ को पढ़कर जायें। इस प्रकार का अध्ययन करने वाले विद्यार्थी को पाठ बहुत अच्छी तरह से याद हो जाता है और परीक्षा का डर भी निकल जाता है। समय-समय पर लिखकर भी पाठ का अभ्यास करना चाहिए जिससे परीक्षा में लिखने का अभ्यास हो जाता है। परीक्षा में लिखते समय प्रश्न संतुलन का भी ध्यान रखना चाहिए। जिससे निर्धारित समय में सभी प्रश्नों के उत्तर लिखे जा सकें। अतः जो विद्यार्थी सुचारु रूप से नियमित समय सारणी बनाकर अध्ययन नहीं करते उन्हें परीक्षा का डर बना रहता है पाठ्यक्रम भी बोझ लगता है। इसलिए कहा है-

"ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय"

जो परीक्षा में असफल हो जाते हैं, वे अपने जीवन को बर्बाद करने में ही अपना लक्ष्य चुनते हैं। जब किये किसी समस्या का समाधान नहीं होता। अतः विद्यार्थियों को चाहिए कि नियमित रूप से पढ़ाई करें, परीक्षा की तैयारी करें, परीक्षा किसी भी प्रकार की हो उससे कभी भयभीत नहीं होना चाहिए।

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