जनसंख्या में बढ़ता असंतुलन-स्त्रियों की घटती संख्या पर निबंध
यदि मानव जीवन एक गाड़ी है, तो स्त्री और पुरुष उसके दो पहिए हैं। इन दोनों पहियों में से किसी एक के भी असंतुलित होने पर परिवार या समाज रूपी गाड़ी का चलायमान होना असंभव होगा। अतः इस समाज में स्त्री और पुरुषों की संख्या का समान होना आवश्यक है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि भारतीय जनसंख्या में स्त्रियों का अनुपात लगातार घटता जा रहा है। यह एक संकेत है बढ़ते हुए सामाजिक असंतुलन का। यह असंतुलन शिक्षित राज्यों में ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। कुछ शिक्षित राज्यों में विवाह योग्य लड़कों को लड़कियाँ मिलने में बहुत परेशानी हो रही है।
असंतुलन का कारण :- इस समस्या का मुख्य कारण है- भारतीय समाज में पुत्र को वरीयता देना। समाज की ये भी मान्यता है कि पुत्र द्वारा दिये पिण्ड दान द्वारा माता-पिता को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। जब तक महँगाई कमथी तब तक लोग दो से अधिक बच्चों का पोषण कर लेते थे किन्तु वर्तमान में बढ़ती हुई महँगाई ने परिवार को एक या दो बच्चों तक सीमित रहने पर विवश कर दिया है। हर व्यक्ति को एक बेटा अवश्य चाहिए। इसके लिए भी कई तरह के उपाय किये जाते हैं। कन्या भ्रूण हत्या भी एक बहुत बड़ी समस्या है। इस समस्या का एक बहुत बड़ा कारण-"समाज की पुरुष-प्रधान मानसिकता" है। इसी सोच के कारण समाज में बेटी और बेटा की परिवरिश, पढ़ाई-लिखाई आदि में भी दोहरा मापदण्ड अपनाया जाता है। दहेज प्रथा के कारण भी बेटियाँ बोझ समझी जाती हैं। सरकार ने बेटियों को बचाने की कई योजनाएं लागू की हैं, जैसे "लाडली योजना", "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ", "कन्या विद्या धन" आदि। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रचार माध्यमों द्वारा जन-जागरूकता अभियान चलाकर सरकार जन-चेतना उत्पन्न करने का प्रयास करती है। कन्या जन्म पर माता-पिता को प्रोत्साहन राशि, कन्या के विवाह में आर्थिक मदद, इस दिशा में उठाये गए ठोस कदम हैं। सरकार ने भ्रूण लिंग परीक्षण को अपराध घोषित किया है। लिंग परीक्षण करने वाले डॉक्टरों के लिए सजा का प्रावधान है। इन सभी प्रयासों से लोगों की सोच में बदलाव आया है और वे कन्याओं के प्रति अधिक सहृदय बने हैं।