छत्तीसगढ़ी लोक कथा
चुरकी अउ मुरकी
एक गाँव म दू झन बहिनी रहें-चुरकी और मुरकी। उंखर एकेच ठिन भाई रहे। दूनों ओखर बरअब्बड़ मया करें। उंखर बाढ़े ऊपर ले उंखर बिहाव हो गै।संजोग की बात के एके गाँव म दुनों झन बिहाइन।चुरकी के बाल-बच्चा होइस। मुरकी के नइ होइस।खूब बछर बीते ऊपर ल चुरकी के मन'भइया मेर जाय के होइस। मुरकी ल बता के ओ हर कहिस-"मैं भइया घर जातेंव ओ। दू-चार दिन म लहुट आहौं।तलघचा ले मोर बाल-बच्चन ल संभाल लेते। मुरकी जिया गइस।
चुरकी मइके डहर रेंगिस। रद्दा म चुरकी ल एक ठिन बोइर पेड़ परिस। पेड़ कहिस-कस ओ कहाँ जाथ हस?' चुरकी-'भइया घर तो जाथ हौं गा।'पेड़ कहिस-'अइसे ! ले मोर तरी के भुईयाँ ल लीप-बहार दे तो तोर लहुटत ले में सुघ्घर मीठ-मीठ बोइर ल टपका दे रहिहौं। तेला तैं बीन के अपन लइकन तिर ले जाबे ।'चुरकी कहिस-'का हो ही !बनिहारिन त हौं रे भाई !लीप देथों । अइसे बोल के चुरकी ओ पेड़ तरी ल बनेसुघ्घर बहार देइस, अउ कहूँ ले गोबर लान के लीप डारिस। फेर आघु रेगिस। चलत-चलत ओला एक खूब बड़ दइहान दिखीस । ओमा सुरही गाय मन बैठे रहिन। एक सुरही गाय चुरकी ल पूछिस -'कहाँ जात हस ओ?' अपन भइया घर तो जाथ हौं दाई।"ए दइहान ल खरहार-बहार के लीप देते ओ। लहुटत खानी एक ठिन दोहनी अपन भइया घर ले ले आबे।तोला हमन दूध दे देबो। लइकन-बच्चन ल खवा पिया देबे। ह-हो! का भइगे ! बनिहारिन तो आहिच हों। अतका कहि के चुरकी लकर-लकर लीपिस-बहारिस और सुरही गाय मन ला माथा टेकिस अउ रद्दा रेंगिस। थोरकन दूर गे हो ही कि ओला एक भिंभोरा दिखिस | भिंभोरा के तीर-तकार कोनो मनखें न रहें। चुरकी ल मनखे भाखा सुनाइस-कस ओ बहिनी? कोन डहर जाथ हस? चुरकी बड़ अचम्भो म पर गै! कहीस जात तो हों में भइया घर रे भाई। फेर तैं कोन आस ? ए मेर कोनो दिखत नईये। में भिंभोरा बोलत हौं ओ। ए मेर के मोर भुंईयाँ ल साफकर देते त लहुटती बेरा तोला बनी दे देतेंव | ले का होही ! कहि के चुरकी बने खुबेच सुघ्घर भुंइया ल लीप-बहार के गोबरा देइस। भिंभोरा के पाँव परिस और भइया घर कोती रेगिस।
सँझा बेरा होत रहे। गाँव के मेंडो तीर ले भइया के खेत ह दिखत रहे। चुरकी मेंडो तीर पहुँच के थोरिक सुरताइस। फेर देखिस भइया ह खेतेच म हवै। ओला खूब खुसी लागिस। ओहिच मेर ले चुरकी आरो करिस 'भइया हस का गा?' 'अई' कोन? चुरकी हस का ओ, आ नोनी, आ ओ ! मैं तो रात-दिन खेतेच म रहिथौं ओ। चना ल बेंदरा, गइया खा जाहीं तोने पाके रखवारी करथौ। दूनो भाई बहिनी बड़ दिन म मिले रहें। दुख-सुख गुठियाइन। बहिनी ह भाई बर अब्बड़ कलेवा धर के लाने रहिस। तेला देइस, खवाइस- पियाइस।भइया कहिस 'जा नोनी ! घर डहर तोर भउजी घरे म होही। उहें खाबे-पीबे जौन कुछ पेज-पसैया हो ही तेला। मैं रात घर नइ आवौं चुरकी भउजी पास चलीस। घर पहुँचत ले बने अंधियार हो गे रहे। भउजी टेंकी म धान कूटत रहिस। चुरकी पहुंचिस, खुशी-खुशी भउजी के पाँव परीस। भउजी सुघ्घर नइ गोठियाइस! चुरकी बपुरी ले चुपे चुप धान कुटवाये लागिस। धान कुटे ऊपर ले चुरकी ल भउजी कहिस- ले न ओ ! रांध डारते । बहुत दिन म मोला अराम मिलही।'ओ भउजी ! मैं तोर पहुना हौं न ओ! अतका दूर ले रेंगत आए हौं, थकासी लागत हे। ले ,हो गै। एहीच घर के बेटी हस।' चुरकी बपुरी कुछू नई बोलिस अउ रांधे लगिस। जेवन चुरे ऊपर ले भउजी कहिस-'मैं तोर भइया बर खेत स ले जिहौं, महु ओखर सों खा लेहों। ले हमरे दूनों झिन के जेवन ल जोर दे।अउ, तैं इहेंच खा लेबे अउ सूत जाबे । चुरकी जोर देइस | भउजी चल दीस। चुरकी घलो खाइस और सुत भुलाइस। सहींच म चुरकी बहुत सीधा रहीस।
खेत म पहुंच के भउजी भइया ल खाये-पियेल देइस। अपनो खाइस। .फेर कथे-'आज घर में पहुना आये हवे। मोला नइ सुहाइस। हमीं मन तो भर पेट खाए ल नइ पावन,फेर पहुना ल कइसे पोसबो ?" भाई ओला समझाइस-अपने बहिनी तो आय ओ! हमन तो गरीबी के मारे ओला तीजा-तिहार म बिदा नइ करावन । बपुरी मया म तो आइस हवे अपने मन ले। ओला ऐसे झन कहि ओ। पेज-पसइया जौन हम खाबौ तौन आहू ल देबो।फेर काल-परसो त ओहा चल देही। अइसे समझा के ओला घर डहर भेजिस। बिहान होइस । चुरकी कथे-'अब घर जातेंव भउजी। भउजी बड़ा खुस । चुरकी एक ठिन दोहनी मांगिस। भउजी काये-जा न घर भीतरदेख लेबे। कोनो तीर म जुन्ना-मुन्ना माढ़े हो ही त ले ले।चुरकी एक ठिन पाइस, धरिस, भौजी के गोड़ लागिस अउ खार कोती रेगिस। खेत म भइया संग भेट करिस ।भझ्या कहिस-ले, नोनी, चना भाजी टोर ले चुरकी थोरकुन भाजी टोरिस अउ भइया के पाँव पर के अपन घर डहर रेगिस।
रद्दा म ओला सबले पहिली भिंभोरा भेंटिस। चुरकी ओला .... बहारिस अउ हाथ गोड़ धोय बर तीर के तरिया म गिस। लहुटिस त देखत का है के भिंभोरा तीर दू तीन पसर अस रूपया कुढ़ोय हवे । भिंभोरा कहिस-'ए तोर बनी हे आ! एला उठा ले।' चुरकी झटकुन रुपया ला सकेल के चरिहा म राखिन । तेखर ऊपर चना भाजी ल तोप देइस। भिंभोरा के पाँव परिस अउ आघू रेगिस। थोरकन आगे चले ऊपर ले ते।ह दइहान ल भेंटिस। ओखरो माटी--गोटी ल चुरकी सफा करिस। सुरही गाय मन अपन-अपन बछरू ल कहिन एक-एक ढेंटी के दूध चुरकी के दोहनी में उलद देव । ओ मन ओइसने करिन. अउ देखते-देखत दौ चुरकी के दोहनी दूध म भर गै। चुरकी गझ्या मन के पाँव पर के रेंग देइस।अब चुरकी बोइर झाड़ तरी पहुँचीस। अब्बड़ सुघ्घर-सुघ्घर पके-पके बोइर ओही लीपे बहारे भुंइया म गिरे रहे। झाड़ ह चुरकी ल कहिस- एला बीन के ले जा। अब चुरकी के चरिहा,दुहनी सों ह तो भरे रहीस । कामा धरतीस। तभो ले ओली म ओली घलो भरे-भरे देख के मुरकी के जी ललचाइस। पूछिस-का-का पाए ओ भइया घर ले।' ओ पूछत अपनेच अंगना में ठाड़ भइ गे ओखरेच तीर। चुरकी सबो जिनिस ल देखा देइस।मुरकी हर जानिस सबों चीज ल भइया दे हवै। ओ हर कहिस-'महूँ काल भइया घर जातेंव ओ।' जा न ओ-चुरकी कहिस|
बिहान भए मुरकी भइया घर रेगिस। रद्दा मे बोइर झाड़ ओखर ले कहीस-मोर तरी के मुइया ल लीप बहार देते ओ।तोला लहुटती खानी बोइर देहूँ। मुरकी तनिया गइस अउ जवाब देइस में अपन भइया घर ले नइ ले आहौं का। आघु रेंग देइस । दइहान म सुरही गाय मन लीपे- बहार दे कहीन तो उन्हू ल उल्टा-सुलटा कहि के आगे रेगिस। भिंभोरा भेटिस। ओहू कहिस ।ओहु ल ऐंठ के जवाब देइस- 'मैं भूख मरथ हौं का! ओ भैया घर डहर रेंग देइस। खेत म भइया संग भेटिस। भइया बने गुठियाइस बताराइस। घर पहुंचिस भउजी घलौ बने खवाइस पियाइस।बिहनिया बेरा मुरकी घर बहुरे बर कहिस। भउजी कहिस हौ और देइस कुछ नहीं। भइया पास पहुंचिस। भइया कहिस' जा न नोनी, भाजी-उजी टोर लेते। थोरकुन भाजी टोरिस अउ रेंग देइंस! मनेमन-मनेमन मुरकी कुड़बुड़-कुड़बुड़ करत जाय। मोला भइया कुछू नइ देइस |चुरकी ल सबो कुछ दे डारिस ,अउ अइसे रिसात चले जात रहिस के भिंभोरा तीर आ गे। ओखर पहुँचते साथ भिंभोरा ले दु तीन बड़े-बड़े करिया साँप परकट होइन, जो औला चाबे बर दौड़िन। मुरकी भागिस। गिरत-परत दइहान तक पहुँचिस। सुस्ताय बर बइठिस तौ मरकनही सुरही गाय मारे ल दौडिस, बपुरी ओहू मेर नइ बैठ पाइस। भागे लागिस ।कहूँ गोड़ पिराइस, कहूँ कोहनी और माड़ी फूटिस । बोइर झाड़ तरी बोइर के काँटेच काँटा भरे रहिस। ओहू म हाथ-पाँव छेदाइस। खून म लथपथ चुरकी जब मुरकी ल देखिस त बड़ा दुख लागिस ओला। ओखर मरहम पट्टी करिस अउ पूछिस-सब कइसे हो गे ओ। मुरकी कहिस -तोला तो भइया-उजी मन अतका अतका चीज दे रहिस। मोला त कुछेच नइ देइस। चुरकी कहिस-भइया त मोहू ला कुछ नइ दे रहिस। ओखर मन पूँजीच कतका हवै जउन ल ओहर दे सकही। तोला रद्दा म कोनों कुछ नइ कहिस का ओ? फेर मुरकी सब हाल ल बताइस।तब चुरकी कहिस-तोला खूब गरब रहिस ओ।तउने पा के तोर अइसन गत होइसा ए दुनियादेथे म गरब कौने के नइ रह जाय ओ, अउ मनखे ल ए गरब ह नीचे गिरा देथे।
दार भात चूर गे मोर कहानी पुर गे