ये जिनगी फेरं चमक जाए ye jingi fer chamak jay chhattisgarhi kavita

ये जिनगी फेरं चमक जाए

               भगवती लाल सेन 


कोठी म धान छलक जाए, ये जिनगी फेरं चमक जाए।

झन बैर भाव खेती म कर, मन के भुसभुस निकार फेंको

हाँसौ-गोठियावौ जुरमिल के, सुन्ता के रद्दा झन छेकौ ।

गोठियइया घलो ललक जाए, सुनवइया सबो गदक जाए ||1||


जिनगी भर हे रोना-धोना, लिखे कपार लूना बोना।

जाना है दुनिया ले सबला, काबर करथस जादू टोना।

हुरहा मन मिले झझक जाए हँडिया कस भात फदक जाए ||2||


मुँह घुघवा असन फुलोवौ झन, कोइली अस कुहको बगिया म

चंदा अस मन सुरुज कस तन, जिनगी महके फुल बगिया म

भेंटौ तो हाथ लपक जाए, गुँगुवावत मया भभक जाए।।3।।


भुइँया के पीरा ल समझौ धरती के हीरा ल समझौ

काबर अगास ल नापत हौ, मीरा के पीरा ल समझौ

कोरा के लाल ललक जाए, बिसरे मन मया छलक जाए ।।4।।


जुग तोर बाट ल जोहत हे, पल छिन दिन माला पोहत हे

अमरित बन चुहे पसीना तोर, मेहनत दुनिया ल मोहत हे

अंगना म खुसी ठमक जाए, सोनहा संसार दमक जाए,

कोठी म धान छलक जाए, ये जिनगी फेर चमक जाए।।5।।

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