माटी. होही तोर चोला रे संगी,
- चतुर्भुज देवांगन 'देव'
माटी. होही तोर चोला रे संगी,
माटी होही तोर चोला
माटी ले उपजे माटी मां बाढ़े,
माटी में मिलना हे तोला॥
माटी के घर मा माटी के भइय्या
लाख जतन करे माटी के दुनियाँ
बड़े-बड़े मनखे नइ बांचिस
कोन कहे अब तोला रे संगी॥
चारेच दिन के सुघ्घर मेला
आखिरमा सब माटी के ढेला
मत बन कखरो दुसमन बहरी
जाना हे एक दिन तोला रे संगी॥
सुंदर काया ले मोह हटा ले
मन मंदिर में जोत जगाले
ये तन संग न जाही रे मूरख
जीयत भर के चोला रे संगी॥