मोबाइल फोन बिन सब सून
कभी विलासिता का साधन माना जाने वाला मोबाइल फोन अब हर किसी की जरूरत बना हुआ है। अमीर हो या गरीब, युवा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष मोबाइल हर किसी के हाथ में देखा जा सकता है । एक समय था जब मोबाइल पर बातें करने का पैसा तो देना ही पड़ता था इसे सुनना भी महँगा पड़ता था, पर बदलते समय के साथ-साथ आने वाली कॉल्स निःशुल्क हो गई हैं। इस क्षेत्र में विभिन्न प्राइवेट कम्पनियों की दखल के पश्चात् मोबाइल फोन दिन पर दिन सस्ता होता जा रहा है। पहले मोबाइल केवल फोन करने के लिए ही उपयोग में आता था किन्तु अब वर्तमान में इसकी उपयोगिता को देखते हुए यदि हम इसे कम्प्यूटर की संज्ञा दें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। मोबाइल फोन जिस तेजी से लोगों की पसंद बन कर उभरा है, उतनी तेजी से कोई अन्य संचार साधन नहीं। इससे छात्र अपने नोट्स तैयार कर लेता है, बेरोजगार काम की तलाश करता है। व्यापारी बाजार के चढ़ते उतरते भावों पर नजर रखता है। घर बैठे-बैठे एक काल पर हम राजमिस्त्री, प्लम्बर, कारपेंटर आदि घर पर बुला लेते हैं। इसमें कैल्कुलेटर, कैलेंडर, अलार्म, आदि सुविधाएँ हमारे जीवन को आसान बना देती हैं। घर पर एक मोबाइल फोन होने पर महिलाएँ और बुजुर्ग स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हैं। क्योंकि घर में अकेले रहने के बावजूद किसी मुसीबत में वे अपने परिजनों से आसानी से संपर्क कर सकते हैं।
किन्तु हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। इसका दूसरा पक्ष बहुत ही चिंतनीय है। विद्यार्थी वर्ग इसका प्रयोग केवल फिल्में, वीडियो देखने, चैटिंग करने, अनावश्यक बातें करने यहाँ तक की छुप-छुप कर अश्लील फिल्में देखने के लिए करके इसका भरपूर दुरूपयोग करते हैं। इससे उनका पढ़ाई का स्तर तो गिरता ही है उनके स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बहुत अधिक प्रयोग से बहरापन बढ़ता है। आंतकवाद, नक्सलवाद जैसे बुरे कर्मों में लिप्त लोग इसका गलत उपयोग करते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मोबाइल फोन विज्ञान का ऐसा चमत्कार है जो हमारे लिए अलादीन के चिराग से कम नहीं है। किन्तु इसके सही या गलत उपयोग हमारे स्वयं के हाथ में है।