मेरी पर्वतीय यात्रा meri parvatiya yatra

 


 मेरी पर्वतीय यात्रा

एक स्थान पर रहते-रहते जब मनुष्य ऊब जाता है तब वह इधर-उधर घूमकर, कुछ दर्शनीय स्थलों का भ्रमण कर अपना मन बहलाता है। मनुष्य एक भ्रमणशील प्राणी है और सैर अगर पर्वतमालाओं की हो तो सैर का आनंद ही आ जाता है। इस बार दशहरे की छुट्टियों में मैंने अपने मित्रों के साथ शिमला घूमने जाने का कार्यक्रम बनाया। अपने-अपने माता-पिता से आज्ञा लेकर हम यात्रा के लिए निकले । बचपन से ही मेरी इच्छा थी कि मैं शिमला घूमने जाऊँ। 10 अक्टूबर को हमने रेलगाड़ी द्वारा यात्रा प्रारंभ की । पर्वतीय प्रदेशों का जीवन चक्र निराला ही होता है।

                      मैं खिड़की के पास ही बैठा था और बाहर के दृश्यों को भाव-विभोर होकर देख रहा था। बाहर फैली हुई पर्वत श्रृंखलाएँ उनके बीच स्थित छोटे-छोटे गाँव थे। रेल के डिब्बे से उनके छोटे-छोटे घर खूबसूरत दिखाई दे रहे थे। मैं उन सुंदर दृश्यों में खो सा गया था तभी कालका स्टेशन आ गया। पर्वतीय प्रदेश का छोटा-सा जंक्शन था। बाहर लोग पहाड़ी वेशभूषा पहने इधर-उधर घूम रहे थे, उनके मुख पर सौम्यता और सादगी झलक रही थी। हमने जलपान किया, कुछ ही देर में हमें शिमला के लिए रेलगाड़ी मिल गई । छोटी सी गाड़ी जिसमें केवल पाँच डिब्बे थे और उसके दोनों ओर इंजन जुड़े थे। रास्ता चक्करदार तथा संकरा था। ठंड से हम सिकुड़े जा रहे थे। हम शिमला पहुँच गये।

                    शिमला हिमाचल प्रदेश की राजधानी है। यहाँ आधुनिक रूप से घर बने हुए थे। हमने शिमला घूमकर देखा। शहर में कई सुंदर-सुंदर सिनेमा घर, राजभवन इत्यादि देखा । मुझे शिमला की सड़कों पर स्केटिंग करने में बहुत मजा आया है। ऊँची-ऊँची पर्वत मालाएँ, घाटियाँ, भाँति-भाँति के सुन्दर फूलों से लदे वृक्ष ऐसा मन कर रहा था कि सारी उम्र यहीं रह जायें। ऊँची पहाड़ियों की चोटियों से नीचे झाँकने पर गहरे गड्ढे ऐसे दिखाई देते मानो सीधे पाताल से संबंद्ध हो। इस प्रकार हमने तीन दिन तक घूम-घूम कर दूर-दूर तक फैले हुए प्राकृतिक सौंदर्य का भरपूर आनंद लिया। तीन दिन मौज-मस्ती में कैसे कट गये पता भी नहीं चला। फिर हमने वहाँ से लौटने की तैयारियां शुरू कर दी। इस बार हम बस द्वारा वहाँ से चले बस से हमने ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ देखीं,चक्करदार साँप नुमा मोड़ देखे, जिनके नीचे गहरे, गड्ढे थे। पर्वतों के आस-पास फैली हरियाली और नीचे फैले खेतों ने हमारा मन मोह लिया। धीरे-धीरे हम इस मनमोहक प्रदेश से दूर होते गये। अपने घर पहुँच गये। आज भी मुझे वह यात्रा याद आती है। मेरे जीवन के अविस्मरणीय दिनों में से एक है।

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