उपभोक्ता शोषण upbhogta soshan

 

उपभोक्ता शोषण

विषमता शोषण को जननी है। समाज में जितनी अधिक विषमता होगी, सामान्यतया शोषण भी उतना ही अधिक होगा। चूँकि यहाँ बात उपभोक्ता शोषण को हो रही है तो सर्वप्रथम उपभोक्ता शोषण का अर्थ समझना आवश्यक है । उपभोक्ता शोषण का तात्पर्य केवल उत्पादक व व्यापारियों द्वारा किये जाने वाले शोषण से ही लिया जाता है। किन्तु उपभोक्ता शब्द के दायरे में वस्तुएँ व सेवाएँ दोनों का उपभोग शामिल है । सेवा क्षेत्र के अंतर्गत डॉक्टर, शिक्षक, प्रशासनिक अधिकारी, वकील आदि आते हैं। इन्होंने उपभोक्ता शोषण के जो कीर्तिमान बनाये हैं, वे 'गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज कराने लायक हैं। एक अफसर अपनी सात पीढ़ियों को चैन से रखने के लिए सरकारी पैसों को निगल जाता है। शिक्षकों को ट्यूशन से फुर्सत नहीं मिलती। डॉक्टर प्राइवेट सर्विस को ही जन सेवा मानते हैं। वकीलों को झूठे मुकदमों में ही आनंद आता है। इसी प्रकार व्यापारी भी कम मात्रा, मिलावट, जमाखोरी, कृत्रिम मूल्य वृद्धि आदि द्वारा उपभोक्ताओं की खाल उतारने में लगा रहता है। मिलावट करने से न जाने कितनी जानें चली जाती हैं, इस बात का लक्ष्मी के पुजारियों को कोई गम नहीं। आज व्यापारी वर्ग भारत को भगवान न समझकर लाभ को ही अपना इष्ट देवता मानता है। मिलावट, कम तौल, अधिक दाम आदि उस इष्ट देवता की पूजा विधियाँ हैं। हालाँकि अब उपभोक्ता संरक्षण की बात उठने लगी है। असंगठित तथा दिशाहीन उपभोक्ता का शोषण जम कर हो रहा है। उनके हितों की सुरक्षा के लिए अनेक कानून पास किये गये हैं। माप व बाट मानक अधिनियम, खाद्य अपमिश्रण निवास अधिनियम आदि। किन्तु क्या ये उपभोक्ता को शीघ्र ही न्याय दिलाने में सहायक सिद्ध हुए? वास्तव में ये दण्डात्मक नियम हैं और न्याय प्रक्रिया इतनी लम्बी और थका देने वाली है कि उपभोक्ता यह सब सहन नहीं कर सकता। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में पास हुआ, परंतु उसके क्रियान्वयन में देरी की जाती है। सफेद पोश कानून से बचने का रास्ता तलाश लेते हैं। अतः उपभोक्ता को अपने बचाव के लिए स्वयं जागरूक होना पड़ेगा। देश में सैकड़ों उपभोक्ता संगठन हैं , परन्तु इनका कार्यक्षेत्र अभी तक महानगरों और नगरों तक ही सीमित है, आज जरूरत है कि ऐसे संगठनों को गाँव स्तर तक अपना कार्य करना चाहिए। इनके अलावा रेडियो, दूरदर्शन, समाचार पत्र आदि के माध्यम से उपभोक्ताओं को जागृत किया जा सकता है। यह कार्य सरकारी संगठन नहीं कर सकते। युवा इस क्षेत्र में प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं।


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