अतिथि- निबंध
"अतिथि देवो भवः" अर्थात् भारत में अतिथि को देवता की उपाधि दी गई है। यहाँ के लोग घर आये अतिथियों का मान-सम्मान करते हैं। उनके आने पर न केवल सम्मान प्रकट करते हैं। अपितु उनके खान-पान का भी विशेष ख्याल रखते हैं। विशेष ध्यान से तात्पर्य है जो चीजें घर में सामान्य रूप से उपलब्ध नहीं होती उनकी भी व्यवस्था की जाती है। जैसे जब घर में किसी अवसर विशेष पर मेहमान आते हैं, तो उनकी प्रसन्नता एवं रुचि के अनुसार तरह-तरह के व्यंजन परोसे जाते हैं। शादी ब्याह के अवसरों पर तो व्यंजनों की गिनती करना मुश्किल हो जाता है। शादी में आया हर आगंतुक एक सादर आमंत्रित अतिथि होता है, जिसका मेजबान दिल से सम्मान करता है। जो लोग अतिथि को अपने घर बुलाकर भी उनके मान-सम्मान में कमी करते हैं, वे हिन्दुस्तानी तो क्या मनुष्य कहलाने के भी हकदार नहीं होते। कुछ घृष्ट और अवसरवादी लोग अतिथि को आमंत्रित कर उन्हें वैसे ही भोजशाला में छोड़ देते हैं। उन्हें खाना है खायें न खाएँ इससे अतिथि का अपमान होता है। यह व्यवहार उचित नहीं है। अतिथि को सम्मानपूर्वक भोजन परोस कर उससे प्रेम पूर्वक बातें करते हुए उसे खिलाना चाहिए। आज का युग व्यक्तिवादी युग है। लोग अपने दायरे में सिमटे हुए हैं। ऐसे लोगों के लिए मेहमान भी बोझ होते हैं । यदि वे मेहमान बुला भी लें तब भी उनके साथ औपचारिक व्यवहार ही करते हैं। और उन्हें जैसे-तैसे जितनी जल्दी हो सके विदा करना चाहते हैं। यदि मेहमान कुछ दिन रुक जाए तो उनके लिए वह अतिथि मुसीबत बन जाता है। इसका मुख्य कारण उनकी मनः स्थिति है। कभी-कभी यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आने वाला अतिथि आपका कितना अपना है। लेकिन सच्चाई यही है कि अनुदार एवं कृपण व्यक्ति के लिए मेहमान एक समस्या ही है किन्तु उदार एवं मिलनसार व्यक्तियों के लिए देवता।