विद्यार्थी और अनुशासन vidhyarthi aur anusashan

 विद्यार्थी और अनुशासन

जीवन का सबसे महत्वपूर्ण काल होता है "विद्यार्थी जीवन'' इस काल में सीखी गई बातों पर पूरा जीवन निर्भर करता है। बच्चे कच्ची मिट्टी के समान है, यही वह काल है जब मनुष्य को आकार मिलता है। व्यक्ति के जीवन की सुख-शांति, आचार-विचार व्यवहार सब उसके विद्यार्थी जीवन पर निर्भर करता है। जिस प्रकार मिट्टी के सूख जाने पर यदि आकार में परिवर्तन करना चाहें तो या तो वह टूट जाती है या फिर पूर्णत: नष्ट हो जाती है। ठीक उसी प्रकार विद्यार्थी जीवन है। इसी काल में विद्यार्थी को अनुशासन, सच्चरित्रता, सदाचारिता आदि का भरपूर पालन करना चाहिए ताकि वह समाजोपयोगी नागरिक बनकर समाज और राष्ट्र के उत्थान में अपना योगदान दे सकें । किन्तु वर्तमान में विद्यार्थियों में बढ़ती अनुशासनहीनता समूचे देश के लिए चिंता का विषय है। अनुशासनहीनता का मुख्य कारण है- माता-पिता के संस्कार एवं बच्चों की शरारतों को अनदेखा किया जाना। बच्चों की शरारत को बचपना समझ कर अनदेखा करना, पड़ोसियों या परिचितों की शिकायत को अनदेखा करना, शिक्षकों की अवहेलना करना, बच्चों को निर्दोष करने का प्रयत्न कर विद्यार्थियों के मनोबल को बढ़ाते हैं । अनुशासनहीनता के लिए वर्तमान शिक्षा प्रणाली भी जिम्मेदार है। विद्यार्थियों को व्यावहारिक ज्ञान न देकर उन्हें रटू तोता बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त विद्यालय में सुविधाओं की कमी, कुप्रबंधन, अध्यापकों की कमी, अरुचिकर शिक्षण पद्धति, खेल-कूद की सुविधाओं का अभाव, पाठ्य की अनुपयोगिता, शिक्षा का रोजगार परक न होना, उच्च शिक्षित होते हुए भी रोजगार की अनिश्चित स्थिति विद्यार्थियों के मन में शिक्षा के प्रति अरुचि उत्पन्न कर देती है। जिसका फायदा राजनीतिक लोग और समाज में रहने वाले असामाजिक तत्व उठाते हैं। वे विद्यार्थियों को भड़काकर हड़ताल, स्कूल-कॉलेजों को बंद करवाना, नारेबाजी, कक्षाओं का बहिष्कार जैसे गैर कानूनी कार्यों में रत हो जाते हैं। और उनमें अनुशासनहीनता आती है।

              विद्यार्थियों में अनुशासन की भावना को उत्पन्न करने में माता-पिता, शिक्षक, विद्यालय प्रशासन, लोकतंत्र सभी को अपनी-अपनी भूमिका निभानी होगी। इसके अतिरिक्त नैतिक एवं चारित्रिक शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करना होगा। इसे दैनिक पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना पड़ेगा। विद्यालयों में विद्यार्थियों को सुविधाएँ देनीपड़ेगी, जिससे पढ़ाई में उनका मन लग सके शिक्षा पद्धति को व्यावहारिक बनाने के साथ-साथ असे रोजगार परक भी बनाना है। बच्चों के उज्ज्वल भविष्य हेतु नैतिक सीख देकर अनुशासनहीनता पर बहुत हद तक अंकुश लगाया जा सकता है।

Post a Comment

Previous Post Next Post