अध्ययन का आनंद
अध्ययन मनुष्य की चिंतन शक्ति को मजबूत करता जिससे उसकी कार्य शक्ति में वृद्धि होती है । अध्ययन के बिना मनुष्य का जीवन पूर्णत: अधूरा है । ऐसा माना जाता है कि विद्या मनुष्य का तीसरा नेत्र है जिसे हम ज्ञान- चक्षु भी कह सकते हैं। जिन लोगों को अध्ययन में आनंद आता है, और जो निरंतर अध्ययन करते रहते हैं, विद्या की प्राप्ति उसी को होती है। अध्ययन के द्वारा ही हम इस ब्रम्हांड से परिचित हो सकते हैं। विश्व में जितने भी महापुरुष हुए हैं उनकी सफलता का मूल-मंत्र अध्ययन ही है। महात्मा गाँधी के संबंध में कहा जाता है कि वे अपने अवकाश का भी एक क्षण नहीं गंवाते थे। उसे वे अध्ययन में लगाते थे। लोकमान्य तिलक, वीर सावरकर, जवाहर लाल नेहरू, जार्ज वाशिंगटन, मार्क्स आदि विद्धानों ने जो महाग्रंथ भारत ही नहीं पूरे विश्व को दिये हैं वह उनके अध्ययन की ही परिणीति थी। लोकमान्य तिलक जी ने "कालापानी" की सजा के दौरान "गीता- रहस्य" नामक महान पुस्तक की रचना की है। वीर सावरकर जी का महान ग्रंथ "सन् 1857 की क्रांति" कारागार में ही लिखा गया। ये महान विभूतियाँ जेल के दूषित वातावरण में रहकर, यातनाएँ सह कर भी हमें इतने उत्तम साहित्य दिये, यह सब उनके अध्ययन का ही परिणाम था। एक विचारक ने कहा है-'पूरा दिन मित्रों की गोष्ठी में बर्बाद करने के बजाय प्रतिदिन मात्र एक घंटा अध्ययन करना कहीं अधिक लाभप्रद है।" अध्ययन के लिए न तो कोई उम्र निर्धारित है और न ही समय का बंधन है। कवि वृंद कहते हैं-
"सरस्वती भंडार की, बड़ी अपूरब बात।
ज्यों-ज्यों खरचे त्यों बढ़े, बिन खरचे घटि जात।।"
अत: यह कहा जा सकता है कि मनुष्य का जीवन अध्ययन के बिना अधूरा है हर व्यक्ति अपनी आयु एवं रुचि के अनुसार अध्ययन करता है। किसी को साहित्य पसंद है तो किसी को विज्ञान । किन्तु इसमें कभी-कभी अपवाद भी होता है। कुछ लोग बहुत अध्ययन, अधिक अध्ययन करते हैं, किन्तु फिर भी पिछड़े हुए होते हैं। अधिक अध्ययन भी कभी-कभी स्वास्थ्य और आजीविका में बाधा होती है। केवल किताबी कीड़ा बन कर रहना उचित नहीं है। हमारी शिक्षा रोजगारोन्मुखी होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त हमारे अध्ययन में नैतिक ज्ञान, जीवन को सत्पथ पर ले जाने वाले साहित्य का भी अध्ययन करना चाहिए। अध्ययन के साथ-साथ उत्तम साहित्य का चयन, चिंतन, मनन भी अध्ययन के आवश्यक अंग हैं। अत: हम कह सकते हैं कि अध्ययन का मूल मंत्र-पढ़ो, समझो और ग्रहण करो है।