विद्यार्थी और राजनीति vidhyarthi aur rajniti


विद्यार्थी और राजनीति

विद्यार्थी और राजनीति का संबंध स्वतंत्रता आंदोलन से शुरू हुआ। इसके पूर्व विद्यार्थी जीवन में राजनीतिका प्रवेश नहीं होता था। वास्तविक रूप में देखा जाए तो स्वतंत्रता आंदोलन में विद्यार्थियों की दखल को राजनीति का नाम देना उचित नहीं है वह या तो देशभक्ति थी या फिर अपने देश को स्वतंत्र कराने की जद्दोजहद । महात्मा गाँधी जी ने भी अंग्रेजों को देश से बाहर खदेड़ने के लिए विद्यार्थियों को आंदोलन में झोंका। आजादी के बाद आंदोलन समाप्त हो गया। और राजनीति का प्रारंभ हुआ। यह हमारे देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण था। विद्यार्थी का कार्य है विद्या अर्जन करना उसका प्रयोग करना नहीं, यह काल जीवन कला सीखने का काल होता है, प्रयोग का नहीं। विद्यार्थी काल में उसका ध्यान केवल और केवल विद्या प्राप्ति की ओर होना चाहिए। 

राजनीति, छल, कपट, झूठ ओर बेईमानी का क्षेत्र है। सुकरात ने कहा है-"राजनीति अपराधियों के लिए अंतिम शरणालय है।" अत: इस क्षेत्र में विद्यार्थी को झोंकना परिवार, देश, समाज सभी के लिए अभिशाप के समान है। जो छात्र भटक जाते हैं। वे जीवन भर इसकी सजा भुगतते हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार-"विद्यार्थियों को राजनीति का पहला पाठ विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में सीख लेना चाहिए। किन्तु कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में छात्र-राजनीति के दुष्परिणाम दिखाई देते रहते हैं। हड़तालें, बंद, आंदोलन और लड़ाई-झगड़े राजनीति के ही परिणाम हैं। अपरिपक्व विद्यार्थियों के हाथों में राजनीति की बागडोर देना बंदर के हाथ में उस्तरा देने के समान है, इस उम्न में राजनीति के दांव पेंच में उलझना

शिक्षा का माहौल खराब करना है। कुछ विश्वविद्यालयों में चुनाव पर प्रतिबंध है अत: वहाँ शांति एवं अध्ययन का माहौल है। विद्यालयों में शिक्षा का माहौल रहे अत: यह आवश्यक है कि वहाँ राजनीति का प्रवेश नहीं होना चाहिए। तभी वह संस्थान विद्या प्राप्ति का आदर्श स्थल बन सकेगा।"


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