मार्स-आर्बिटर मिशन ( मॉम) या मिशन मंगल
प्राचीन समय से ही भारत खगोल शास्त्र संबंधी अनेक विचार विश्व के सम्मुख रखता रहा है। वर्तमान समय में भी भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में इतिहास रचते हुए पीएस एलवी सी-25 राकेट के माध्यम से मार्स ऑर्बिटर यान को मंगल के कक्ष में स्थापित करके अपने मंगल मिशन को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। मंगल यान को श्री हरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से पोलर सेटेलाइट लान्च वेहिकल पीएसएल वी सी-25 की मदद से छोड़ा गया था। यह देश के लिए बहुत बड़ी सफलता है। इसके प्रक्षेपण के पश्चात् भारत की अंतरिक्ष संस्था "इसरो" अमेरिका, रूस और संयुक्त रूप से यूरोपीय संघ की अंतरिक्ष संस्था के बाद चौथी संस्था बन चुकी है, जिसने इतनी बड़ी सफलता हासिल की है। पहले सफल अभियान 'मैरिनर-9' (नासा) को मिलाकर हुए कुल 51 अभियानों में से अब तक केवल 21 अभियानों में ही सफलता प्राप्त की जा सकी है। चीन और जापान की नाकामयाबी के बाद भारत एशिया का पहला और एक मात्र राष्ट्र है, जिसके मॉम अभियान ने पहली कोशिश में ही मंगल ग्रह के कदम सफलतापूर्वक चूमे हैं । इससे पहले यूरोपीय संघ की यूरोपियन स्पेस एजेंसी अमेरिका की 'नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) और रूस की 'रास्कोस्मोज' ने ही अपने अभियान मंगल ग्रह भेजे हैं। वर्ष 1969 में स्थापित 'इसरो' की यह सफलता भारत के अंतरिक्ष में बढ़ते वर्चस्व की ओर इशारा करती है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के एक हजार से ज्यादा वैज्ञानिक इस अभियान से जुड़े थे। जिसमें नवजवान वैज्ञानिकों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जो संस्था में 20 से अधिक थे। सिर्फ 450 करोड़ रुपये अर्थात् लगभग 72 मिलियन डालर की लागत का यह अभियान विश्व का सबसे सस्ता मंगल अभियान हो गया है। इसकी तुलना 18 नवंबर 2013 को भेजे गये नासा के हाल ही के लाल ग्रह अभियान-'मार्स एटमोस्फीयर एंड वोलेटाइल इवोल्यूशन मिशन' (मावेम) से की जा सकती है। जिसकी लागत 671 मिलियन अमेरिकन डालर है। मंगल यान मिशन के पहले चरण के अंतर्गत नवम्बर 2013 में प्रक्षेपित किये जाने के करीब 45 मिनट बाद मंगलयान पृथ्वी में अपनी निर्धारित कक्षा में पहुंचा था। प्रक्षेपण के अगले 25 दिनों तक पृथ्वी के आस-पास चक्कर लगाने के बाद मंगलयान को मंगल ग्रह की ओर बूस्टर रॉकेट से प्रक्षेपित किया गया था। 300 दिनों की यात्रा के बाद 24 सितम्बर को तीसरे अहं चरण के अंतर्गत मंगलयान को सफलतापूर्वक मंगल ग्रह पर उसकी निर्धारित कक्षा में पहुँचा दिया गया। यद्यपि मॉम का मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष यान को लाल ग्रह की कक्षा में पहुँचाना था किन्तु वातावरण, खनिज लवणों मीथेन की उपस्थिति का मंगल ग्रह पर पता लगाना इसके अनुभवजन्य उद्देश्य हैं। मॉम के सुरक्षित तरीके से मंगल ग्रह के कक्ष में पहुँचने के बाद अब 'इसरो' का उद्देश्य सभी उपकरणों को सक्रिय करना है जिनका भार कुल मिलाकर 15 किलोग्राम है। 'इसरो' को अपने मंगलयान के 6 माह से एक वर्ष तक बने रहने की आशा है। इस अभियान की सफलता से भविष्य में इस क्षेत्र में होने वाले भारतीय प्रयासों के लिए सकारात्मकता का वातावरण बना है। तथा इससे आगे आने वाले युवा वैज्ञानिकों केआ त्मबल का विकास होगा।