मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
मन की संकल्प शक्ति अद्भुत होती है। मनुष्य का मन ही अच्छे और बुरे का निर्णय लेता है। मन के निर्णय के अनुसार ही मानव-शरीर कार्य करता है। मनोबल के बिना मनुष्य निर्जीव ढाँचा बन कर रह जाता है। मुसीबतों को देखकर जीवन-यात्रा से क्लांत नहीं होना चाहिए। हमें मन में कभी-भी निराशा की भावना नहीं लानी चाहिए। अपने दृढ़ संकल्प और हिम्मत के बल बूते पर हम अपने सभी कार्य सिद्ध कर सकते हैं। इसलिए किसी ने कहा है-
"हारिए न हिम्मत, बिसारिए न हरिनाम।"
ऐसे अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं जो मन की शक्ति के परिचायक हैं। सरदार पटेल की दृढ़ इच्छा शक्ति के फलस्वरूप अखण्ड भारत का निर्माण, गाँधी जी के सत्य और अहिंसा के प्रति अटूट विश्वास से भारत की स्वतंत्रता एवं वीर शिवाजो द्वारा भारत में मुगलों पर विजय आदि बहुत से उदाहरण हैं। अत: व्यक्ति मन से ही प्रेरित होकर अधिकतर कार्य करता है। अत: मन के हार जाने से बड़े-बड़े संकल्प धराशायी हो जाते हैं, और जब तक मन की संकल्प शक्ति नहीं टूटती तब तक व्यक्ति कठिन-से-कठिन कार्य को करने में न तो निराश होता है और न ही असफल। परिणामत: सफलता या असफलता उस कर्म के प्रति व्यक्ति की आसक्ति की मात्रा पर निर्भर होती है।
"मन एव मनुष्याणां कारण बांध-मोक्ष्योः।"
अर्थात् मन ही व्यक्ति के बंधन व मोक्ष का कारण है। मन सांसारिक बंधनों का और उनसे छुटकारा पाने का सबसे प्रबल माध्यम है। वस्तुत: मन मानव के व्यक्तित्व का वह ज्ञानात्मक रूप है जिससे उसके सभी कार्य संचालित होते हैं। मन में मनन करने की शक्ति होती है। यह संकल्प-विकल्प का पूँजी भूत रूप है। मनन शीलता के कारण ही मनुष्य को चिंतनशील प्राणी की संज्ञा दी गई है। अत: मन के हारने से मनुष्य की हार और मन के जीतने से ही मनुष्य की जीत निश्चित है।