मित्रता या सच्चा मित्र
मनुष्य अकेला नहीं रह सकता। वह सदैव समूह में रहने का इच्छुक होता है । इस प्रकार सामूहिक प्रयासों से आत्मविकास करता है। इस दौरान वह समान कर्म एवं समान प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों के साथ मित्रता स्थापित कर लेता है। मित्रता हमारा अनमोल धन है जिसकी तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती। पंचतंत्र के अनुसार- जो व्यक्ति न्यायालय, श्मशान एवं विपत्ति में साथ देता है, उसी को सच्चा मित्र माना जाता है। सच्चा मित्र सुख एवं दुख में समान भाव से दोस्ती निभाता है। मित्रता की पहली कसौटी यह है कि उसमें संदेह का स्थान नहीं होना चाहिए। यदि मित्र संदेह की दृष्टि से परस्पर एक-दूसरे को देखते हैं तो इसमें मित्रता का अभाव होता है। दूसरी कसौटी यह है कि मित्रता कभी भी स्वार्थ पर आधारित नहीं होती क्योंकि ऐसी मित्रता स्वार्थपूर्ण हो जाने पर टूट जाती है। मित्रता में विश्वास, आस्था आदि गुणों का होना अनिवार्य है। अच्छा मित्र वही है जो मित्रता के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार हो। मित्र सदैव धर्म, जाति, देशकाल की सीमा से परे होते हैं । सच्ची मित्रता को विचारों की एकता दिन-प्रतिदिन प्रगाढ़ करती जाती है। सच्चा मित्र हमारी प्रशंसा तो करता है किन्तु समय आने पर हमारी कमियों के प्रति भी हमें आगाह करता है। विद्वानों का कहना है कि पुस्तकों से अच्छा और सच्चा मित्र कोई हो ही नहीं सकता। पुस्तकों से जीवन- दर्शन के सच्चे दर्शन होते हैं। मित्रता करना तो आसान है पर उसे निभाना थोड़ा मुश्किल होता है। जो मित्र केवल काम निकालना जानते हैं, अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए मित्रता का ढोंग करते हैं, जो केवल सुख के साथी होते हैं, वे वक्त पड़ने पर बहाना बनाकर निकल जाते हैं और मित्रता को कलंकित करते हैं । मित्रता एक ऐसा मोती है, जिसे सागर के गहरे पानी में डूबकर ही प्राप्त किया जा सकता है। मित्रता जीवन का वरदान है। एक सच्चा मित्रमिलना सौभाग्य की बात होती है। सच्चा मित्र मनुष्य की सोई किस्मत को जगा सकता है। और भटके राही को सही राह दिखा सकता है। सच्चे मित्र बहुत कम होते हैं और जो होते हैं उन्हें बनाए रखना हमारा दायित्व होना चाहिए।